मेरी आँखों के जादु से अभी तुम कहा वाकिफ हो , हम उसे भी जीना सिखा देते हे जिसे मरने का शौक हो….😉
@Plato wrote:
एक मुख़्तसर सी वजह है, मेरे झुक के मिलने की,
मिट्टी का बना हूँ, गुरुर जचता नहीं मुझ पर।
Diye se na pucho uski loo me tail kitna h
Saaso se naa pucho baki khel ab kitna h
Puchna hi hain toh uss murde se pucho,
Zindagi me dard or kafan me sukun kitna h
मचलती तमन्नाये वक़्त दर वक़्त बदलती रहती है
आँखे है बेज़ुबान फिर भी हर राज़ उगलती रहती है|
हर तमन्ना पूरी करने के सपने हर शख्स सजाता है!
लेकिन मजबूत इरादे वाला ही उन्हें पूरी कर पाता हैं!
@Plato wrote:
मेरे साथ तुम भी दुआ करो,
यूँ किसी के हक़ में बुरा न हो।
रूठे हुए को मनाना तो दस्तूर-ए-दुनिया…..,
पर रूठे की मानना क्यों नहीं सीखती दुनिया
Good night
Aaj yeah thread dekha to aansu bhar aayein,
Mudattein huye usse muskarayein
Na Janey kaisi tapish thee usmein,
Ki Barood bhi ussey khafa ho gaya
Chala tha wo apni jeevani likhne,
Bas ek aah hi bhar paya usmein.
@asoka wrote:
Aaj yeah thread dekha to aansu bhar aayein,
Mudattein huye usse muskarayeinNa Janey kaisi tapish thee usmein,
Ki Barood bhi ussey khafa ho gayaChala tha wo apni jeevani likhne,
Bas ek aah hi bhar paya usmein.
Ek chingari kafi hai,
Pure watan ko satane ke liye !
Meri Bharat maa par naaz hai,,
Ek ek baccha yahan bhagat Singh hai.
@B@R_0_0_D wrote:
@asoka wrote:
Aaj yeah thread dekha to aansu bhar aayein,
Mudattein huye usse muskarayeinNa Janey kaisi tapish thee usmein,
Ki Barood bhi ussey khafa ho gayaChala tha wo apni jeevani likhne,
Bas ek aah hi bhar paya usmein.
Ek chingari kafi hai,
Pure watan ko satane ke liye !Meri Bharat maa par naaz hai,,
Ek ek baccha yahan bhagat Singh hai.
Shaheedo ki yaad mai,
kuch palkein bichaye gayein.
Ye desh shahedon ka tha,
Kabhi khud se pucho zara
kya tumhare andar bhi koi bhagat singh hain
फकीरों की सोहबत में बैठा कीजिए साहब…..
बादशाही का अंदाज खुद ब खुद आ जायेगा….!!
मौसम से लग रहा है कि घर करीब है…
खुशबू से लग रहा है, मौहल्ला उसी का है ।
यूँ तो ऐ ज़िन्दगी तेरे सफ़र से शिकायतें बहुत थीं,
पर दर्द जब दर्ज कराने पहुँचे तो कतारें भी बहुत थीं !!
गिरते -गिरते एक दिन, आखिर सँभलना आ गया,
जिन्दगी को वक्त की, रस्सी पे चलना आ गया…!
@B@R_0_0_D wrote:
मौसम से लग रहा है कि घर करीब है…
खुशबू से लग रहा है, मौहल्ला उसी का है ।
kya baat , kya baat
सुना है ऊपर वाले ने लाखो लोगो की तक़दीर सवारी है,
काश वो एक बार मुझे भी कह दे के अब तेरी बारी है.
रात भर सजाए रहते है महफ़िल, थकते नहीं…….!!
.
मुझे तो सितारे भी मेरी तरह, किसी के दीवाने लगते हैं……..!!
भूलकर भी अपने दिल की बात किसीसे मत करना,
यहाँ कागज़ भी जरा सी देर में अख़बार बन जाता है !!
नाराज़ ना होना कभी यह सोचकर की काम मेरा और नाम किसी और का हो रहा है…!!
यहा सदियों से जलते तो “घी और रुई” है , पर लोग कहते है की “दीया” जल रहा है…!!
एक मैं था जो लफ्ज़ ढूंढ ढूंढ कर थक गया…
वो ख़रीदे हुए फूल दे कर इज़हार कर गए…
तुम रख न सकोगे मेरा तोहफा संभालकर, वरना मैं अभी दे दूँ, जिस्म से रूह निकालकर…!!
@abhimishra wrote:
एक मैं था जो लफ्ज़ ढूंढ ढूंढ कर थक गया…
वो ख़रीदे हुए फूल दे कर इज़हार कर गए…
= bola
जख्म तो हम भी अपने दिल में तुमसे गहरे रखते हैं ,
मगर हम जख्मों पे मुस्कुराहटों के पहरे रखते हैं !!!
कभी किसी
दिन तेरी भी ज़िद हो
मुझमे छलकने के लिये
मुकम्मल बन जाऊंगा मैं
जब महसूस करूँगा तुझको
खुद में सफ़र करते हुए
मैं तेरी बाहों की गिरफ़्त में महफूज़ हूँ,
मुझे आरज़ू भी नहीं अपनी रिहाई की !!
हर एक लफ्ज़ का अंदाज़ बदल रक्खा है
आज से हमने तेरा नाम, ग़ज़ल रक्खा है
तू कहीं भी हो तेरे फूल-से आरिज की कसम
तेरी पलकें मेरी आँखों पे झुकी रहती हैं
@amitburad3076 wrote:
जख्म तो हम भी अपने दिल में तुमसे गहरे रखते हैं ,
मगर हम जख्मों पे मुस्कुराहटों के पहरे रखते हैं !!!
Wonderful
@B@R_0_0_D wrote:thanks
@amitburad3076 wrote:
जख्म तो हम भी अपने दिल में तुमसे गहरे रखते हैं ,
मगर हम जख्मों पे मुस्कुराहटों के पहरे रखते हैं !!!
Wonderful
उसे आईलाइनर पसंद था,
मुझे काजल।
वो फ्रेंच टोस्ट और कॉफी पे मरती थी,
और मैं अदरक की चाय पे।
उसे नाइट क्लब पसंद थे,
मुझे रात की शांत सड़कें।
शांत लोग मरे हुए लगते थे उसे,
मुझे शांत रहकर
उसे सुनना पसंद था।
लेखक बोरिंग लगते थे उसे,
पर मुझे मिनटों देखा करती
जब मैं लिखता।
वो न्यूयॉर्क के टाइम्स स्कवायर, इस्तांबुल के ग्रैंड बाजार में
शॉपिंग के सपने देखती थी,
मैं असम के चाय के बागानों में
खोना चाहता था।
मसूरी के लाल डिब्बे में बैठकर
सूरज डूबना देखना चाहता था।
उसकी बातों में महँगे शहर थे,
और मेरा तो पूरा शहर ही वो।
न मैंने उसे बदलना चाहा
न उसने मुझे।
एक अरसा हुआ दोनों को
रिश्ते से आगे बढ़े।
कुछ दिन पहले
उनके साथ रहने वाली
एक दोस्त से पता चला,
वो अब शांत रहने लगी है,
लिखने लगी है,
मसूरी भी घूम आई,
लाल डिब्बे पर अँधेरे तक बैठी रही।
आधी रात को अचानक से
उनका मन
अब चाय पीने को करता है।
और मैं…
मैं भी अब अक्सर
कॉफी पी लेता हूँ
किसी महँगी जगह बैठकर ।
गुलज़ार
रूठे हुए अपनों को मना लूंगा एक दिन
दिल का घर फिर से बसा लूंगा एक दिन
लगने लगे जहाँ से हर मंज़र मेरा मुझे
ख़्वाबों का वो जहान बना लूंगा एक दिन
अभी तो शुरुआत हुई है इस सफ़र की
बेरंग ज़िन्दगी में रंग सजा लूंगा एक दिन ।
@B@R_0_0_D
@Plato