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Alpha.Barood
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तमाम अल्फ़ाज़ के म’आनी…..बदल गए हैं…
वो अपने चेहरे पे सो गई है किताब रख कर…
बैठे हैं फुरसत से
तेरी फुरसत के
इंतज़ार में…………..!
बैठे हैं फुरसत से
तेरी फुरसत के
इंतज़ार में…………..!
रुसवा करेगी यह नमी, जो चश्म-ऐ-तर में है;
पी जाओ अश्क, बात अभी घर की घर में है!
तेरी ख़ुशियाँ अज़ीज़ है मुझको…,,,,
तुझसे हारूँ तो जीत जाती हूँ…