ख़ुशियों की मृग मरीचिका में पड़ा है तू , तुम्हारे मन की कस्तूरी मैं हूँ।
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मासूम दुनिया
इक मासूम लम्हा
मेरे सामने से गुज़रा
कहता हुआ- " मेरे पीछे आओ
एक नई दुनिया दिखाऊँ
इस दुनिया में
रंजों ग़म भी हैं – मासूमियत भरे
गिले शिकवे भी हैं बेमानी – बिना मतलब लिए
और ढेरों है हँसी, ख़ुशी और मौक़े मस्ती भरे
वो मासूम लम्हा
मेरे सामने से गुज़रा
छोटी छोटी ऊँगलियों से
पीछे आने का इशारा कर गया
पता नहीं क्यूँ
सारा काम छोड़ कर
हैरानी परेशानी भूलकर
मैं उस मासूम के पीछे चल पड़ा।
ज्यों ही आगे बढ़ता हूँ
हँसी और कलाकारी
मासूमियत भरी सुनता हूँ
और खिंचा जाता हूँ।
सर्दी की धूप को महसूस करता हूँ
गरमी में अमराई की छांव
को महसूस करता हूँ
रंग बिरंगे पंछी दिखने लगते हैं
धरती की ख़ुशबू पहचान में आने लगती है
झिंसि फूहि की बौछार चेहरे पे मेकप करते हैं
घास से पौधे -पौधे से पेड़ -पेड़ से तार पर फुदकती गिलहरी मेरा ध्यान खींचती है
फूलों पर मँडराती तितली को
मेरी आँखें फ़ॉलो करती हैं
क्या यही है वो नयी दुनिया ?
ये तो पहचानी सी लगती है ।
इसे तो मैं कब पीछे छोड़ आया था
बचकानी हरकत सोच मुँह मोड़ आया था
वयस्क ज़िम्मेदारियों के बोझ तले कुचल डाला था ।
मालूम ना था तब कि ये मासूम दुनिया फिर वापस आएगी
पुराने क़िस्से सुनाएगी
गुदगुदाएगी और बताएगी
ख़ुशियों की मृग मरीचिका में पड़ा है तू ,
तुम्हारे मन की कस्तूरी मैं हूँ।
वो एक मौका तो दे मुझें बात करने का दोस्तों,
मैं उसे ही रूला दूँगा, उसी के दिये हुये दर्दं सुनाकर !!बहोत करीब है वो शख्स मेरे,
जिसने खामोशियों का सहारा लेकर दूरियों को अंजाम दिया !!
@abhimishra wrote:
वो एक मौका तो दे मुझें बात करने का दोस्तों,
मैं उसे ही रूला दूँगा, उसी के दिये हुये दर्दं सुनाकर !!
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ओलम्पिक में पदक जीतने वाली पी. वी. सिंधु और साक्षी को समर्पित।
सिंधु तुमने मेडल जीता
देश झूम कर नाचा है
तुमने भ्रूण हत्यारों के
चेहरे पे जड़ा तमाचा है
आज ख़ुशी से नाच रहे
सिंधु-सिंधु चिल्लाते हो
अपने घर में बेटी जन्मे
फिर क्यों मुँह लटकाते हो?
रियो में अब तक भारत ने
दो मेडल ही पाया है……
और ये दोनों मेडल भी
बेटियों ने ही लाया है…
आज इन्हीं बेटियों के आगे
जनमानस नतमस्तक है..
आज इन्हीं के कारण ही
भारत का ऊँचा मस्तक है
आज ख़ुशी से झूम रहे हो
अच्छी बात है झूमो-गाओ
लेकिन घर में बेटी जन्मे
तब भी इतनी खुशी मनाओ
बेटियाँ कम नहीं किसी से
शक्ति का अवतार हैं……
इनको जो सम्मान न दे
उसका जीना धिक्कार है
(जय हिन्द-जय भारत)
मैं रूठा, तुम भी रूठ गए
फिर मनाएगा कौन ?
आज दरार है, कल खाई होगी
फिर भरेगा कौन ?
मैं चुप, तुम भी चुप
इस चुप्पी को फिर तोडे़गा कौन ?
बात छोटी को लगा लोगे दिल से,
तो रिश्ता फिर निभाएगा कौन ?
दुखी मैं भी और तुम भी बिछड़कर,
सोचो हाथ फिर बढ़ाएगा कौन ?
न मैं राजी, न तुम राजी,
फिर माफ़ करने का बड़प्पन दिखाएगा कौन ?
डूब जाएगा यादों में दिल कभी,
तो फिर धैर्य बंधायेगा कौन ?
एक अहम् मेरे, एक तेरे भीतर भी,
इस अहम् को फिर हराएगा कौन ?
ज़िंदगी किसको मिली है सदा के लिए ?
फिर इन लम्हों में अकेला रह जाएगा कौन ?
मूंद ली दोनों में से गर किसी दिन एक ने आँखें….
तो कल इस बात पर फिर पछतायेगा कौन ?