Original wrote:…उन्होंने जी भर के मुट्ठी पर मुट्ठी अदरक मुँह में डाल लिये…
“अति” करना तो कभी भी किसी भी बात में उचित नहीं होती!
बिल्कुल बचपन में बच्चों की एक पत्रिका खूब पढ़ी चंपक। कुछ कहानियाँ तो ऐसे दिल को छूती हैं कि ज़िन्दगी भर याद रहती हैं। उसी में छपी एक कहानी ‘मालपूऒं की गंध’ अब तक याद है। अमरचित्र कथा भी खूब पढ़ी। अब पता नही प्रकाशन होता है या नहीं उनका। फिर वेताल (फ़ैंटम) आदि तो थे ही। जिसने भी वेताल इंद्रजाल की कामिक्स पढी होंगी उन्हें ‘प्रेत का विवाह’ तो याद ही होगा। अभी कल किसी से बात होते होते बीच में मुहावरा आया, “बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद”। तभी चंपक में पढी इस कहानी की भी याद आ गयी जो इस मुहावरे के पीछे बताई गयी थी। अब याद कर के लगा…(आजकल के बच्चों की ज़ुबान में) “वाऒ! कूल”
एक बंदर था। जंगल में रहता था। एक बार जंगल में एक पार्टी थी। वहाँ सभी जानवर आये हुये थे। पार्टी सियार के घर थी। सब ने छक कर खाना खाया। बंदर ने भी खाया। खाने-पीने के बाद सियार ने सबको सौंफ़ के बदले अदरक के छोटे छोटे टुकडे काट कर, उसमें नींबू और नमक लगा कर सबको दिया। सब ने एक-एक टुकडा उठाया और सब की देखा देखी बंदर ने भी। उसने पहले कभी अदरक खाया नहीं था। उसे बहुत पसंद आया अदरक का स्वाद। मगर और ले नहीं सकता था क्योंकि किसी ने भी एक-दो टुकडों से ज़्यादा लिया नहीं था । अदरक का स्वाद मुँह में लिये बंदर जी घर आये और आते समय बाज़ार से ढेरों अदरक ले आये। अदरक को ठीक उसी तरह छोटे छोटे टुकडों में काटा और नींबू और नमक लगाया। मगर इस बार उन्होंने जी भर के मुट्ठी पर मुट्ठी अदरक मुँह में डाल दिया। और बस फिर जो गत बनी बंदर मियाँ की वो आप सब समझ सकते हैं। तब से बंदर जी ने तौबा कर ली कि वो अदरक नहीं खायेंगे और सब से जंगल में कहते फिरे कि अदरक बडा बेस्वाद है और जंगल में अन्य जानवर एक दूसरे से " बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद" ।
Original wrote:…उन्होंने जी भर के मुट्ठी पर मुट्ठी अदरक मुँह में डाल लिये…
“अति” करना तो कभी भी किसी भी बात में उचित नहीं होती!
khanabadosh wrote:“अति” करना तो कभी भी किसी भी बात में उचित नहीं होती!
अति तो सर जी आपने भी की है… 5 साल पुरानी पोस्ट को रिप्लाई कर के 😜
xuseronline wrote:अति तो सर जी आपने भी की है… 5 साल पुरानी पोस्ट को रिप्लाई कर के 😜
Khanabadosh kya jaaney.. post aging ka swaad mahatv.
khanabadosh wrote:Khanabadosh kya jaaney.. post aging ka
swaadmahatv.
वाह वाह!
सर जी… ये आपने तो नहीं लिखी?
xuseronline wrote:वाह वाह!
सर जी… ये आपने तो नहीं लिखी?
ना जी ना 🙂राम जी की कृपा से🛐
हम ऐसे कैरक्टेरलेस ठरकी नहीं हुए आज तक.. की.. यहां वहां मुह मारें।
(संभवतः) श्रृंगार-रस को दर्शाती इन पंक्तियों को राग-बद्ध करने का श्रेय हम नहीं ले सकते।